दंगे इंसानियत के नाम पर बदनुमा दाग हैं, मगर आजादी के छह दशकों बाद भी हिंदुस्तान उसे ढोने को मजबूर है। ‘शोरगुल’ की सोच उसी बुनियाद पर टिकी